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Shlesh Alankar
श्लेष अलंकार | श्लेष अलंकार के 10 उदाहरण | Shlesh Alankar

Table of Contents

श्लेष अलंकार शब्दालंकार का एक महत्वपूर्ण प्रकार है। श्लेष अलंकार में एक ही शब्द के दो या अधिक अर्थ होते हैं, और यह शब्द अपने अलग-अलग अर्थों के माध्यम से कविता या वाक्य में गहराई और सौंदर्य प्रदान करता है। हिंदी साहित्य में अलंकारों का विशेष स्थान है, जो कविता और साहित्य की शोभा को बढ़ाते हैं। अलंकार वह अलंकरण या साज-सज्जा है जो शब्दों के माध्यम से साहित्यिक रचना को और अधिक आकर्षक और सुंदर बनाता है। इस श्लेष अलंकार और श्लेष अलंकार के 10 उदाहरण (Shlesh Alankar) ब्लॉग में, हम श्लेष अलंकार और श्लेष अलंकार के 10 उदाहरण को समझने का प्रयास करेंगे।

श्लेष अलंकार की परिभाषा

जहाँ एक ही शब्द के अनेक अर्थ निकलते हैं, वहाँ श्लेष अलंकार होता है। जब किसी शब्द का प्रयोग एक बार होते हुए भी अपने भिन्न-भिन्न अर्थ प्रकट करता है, तो उसे श्लेष अलंकार कहते हैं।

श्लेष अलंकार का उदाहरण

हर खुशी की कीमत होती है।

इस वाक्य में “कीमत” का अर्थ मूल्य और भावनात्मक महत्व दोनों हो सकता है। जिससे श्लेष अलंकार उत्पन्न होता है।

श्लेष अलंकार के उदाहरण


1. रहिमन पानी राखिए बिन पानी सब सून। पानी गए न ऊबरे मोती मानस चून।।
 
इस में “पानी” शब्द का श्लेष अलंकार के तहत तीन अलग-अलग अर्थ हैं, जो श्लेष अलंकार का स्पष्ट उदाहरण है। मोती के अर्थ में – चमक, मनुष्य के अर्थ में – प्रतिष्ठा और चूने के अर्थ में – जल। जैसे चमक चले जाने पर मोती का मूल्य घट जाता है, वैसे ही यदि किसी का सम्मान चला जाए तो वह वापस पाना बहुत कठिन होता है और चूने से चल जाने पर चूने का मूल्य शून्य जाता है।
 
 
2. नर की अरु नल नीर की गति एकै करि जोय। जेतो नीचो ह्वै चलै तेतो ऊँचो होय।।
 
इस की दूसरी पंक्ति “जेतो चनीं हवैच ले, तेतो ऊँचो हो” में “नीचो हवै चले” और “ऊँचो होय” के शब्दों में दो विभिन्न अर्थों की गहराई है। नलनीर (जल) की गति प्राकृतिक प्रवाह को दर्शाती है, जो अपने गति और स्थान के अनुसार हमेशा ऊँचाई या नीचाई की ओर रहती है, जबकि मानव जीवन में व्यक्ति के कर्म और उसकी दिशा उसे ऊँचाई या नीचाई की ओर ले जाते हैं।
 
 
3. जो रहीम गति दीप की, कुल कपूत गति सोय। बारे उजियारे करै, बढ़े अँधेरो होय।।
 
इसमें “दीप” और “कुल कपूत” के माध्यम से दो विपरीत स्थितियों का चित्रण किया गया है। जब दीप जलता है, तो वह अंधकार को दूर करता है और जब दीप बुझता है, तो अंधकार बढ़ता है। जब कुल कपूत बड़ा होता है , तो कर्म से, अंधकार फैलता है और समाज में परिवार को शर्मसार करता है।
 
 
4. जो घनीभूत पीड़ा थी मस्तक में स्मृति-सी छाई। दुर्दिन में आँसू बनकर आज बरसने आई।।
 

यहाँ “घनीभूत” शब्द का प्रयोग दो अर्थों में किया गया है। पहला अर्थ है “इकट्ठी हुई” पीड़ा, और दूसरा अर्थ इसे मेघों के रूप में भी लिया जा सकता है, जो बारिश के लिए तैयार होते हैं। दुर्दिन” शब्द भी दो भिन्नार्थ देता है। एक तो “बुरे दिन” के संदर्भ में, और दूसरा “मेघाच्छन्न दिन” के संदर्भ में।

 
5. सुबरन को ढूंढत फिरत, कवि, व्यभिचारी, चोर।
 

इस में “सुबरन” शब्द श्लेष अलंकार के तहत मानव स्वभाव के विभिन्न पहलुओं को दर्शाती है, जो श्लेष अलंकार का उदाहरण है। कवि के अर्थ में – सुंदर वर्ण, व्यभिचारी के अर्थ में – सुंदरी और चोर के अर्थ में – सोना। वाक्य में सुकृति औ दुष्कृति के बीच एक तुलना करके, अच्छाई और बुराई की उपलब्धियों को समझाया गया है। यह पंक्ति यह दर्शाती है कि समाज में विभिन्न प्रकार के लोग हैं, जो धन और समृद्धि की तलाश में हैं, लेकिन उनके उद्देश्य और तरीके भिन्न हैं।

 
6. मेरी भव बाधा हरो, राधा नागरी सोय। जा तन की झाँई परै, स्याम हरित दुति होय।।
 
इस उदाहरण में “हरित” इस शब्द में तीन अर्थ समाहित हैं । हरना: इसका अर्थ है कुछ छीन लेना, हरा रंग: प्रकृति का प्रतीक हरा रंग, हर्षित: आनंद। “हरित” का प्रयोग किसी पंक्ति में किया जाता है, तो यह एक साथ तीन अर्थ प्रस्तुत करता है, जो भावनाओं और रंगों के साथ-साथ भावनात्मक स्थिति को भी व्यक्त करता है।
 
 
7. मधुबन की छाती देखो, सूखी इसकी कितनी कलियां।
 
इस पंक्ति में “कलियां” शब्द का श्लेष अलंकार बहुत सुंदर तरीके से प्रस्तुत किया गया है। प्राकृतिक संदर्भ में सूखी कलियां यह दर्शाती हैं कि प्रकृति में जीवन का अभाव है। सामाजिक या भावनात्मक संदर्भ में युवाओं या नन्हे बच्चों का सूखना या उनका विकास रुक जाना एक गहरा संकेत देता है कि समाज या जीवन में खुशियों और संभावनाओं का अभाव है।
 
 
8. चिरजीवौ जोरी जुरै, क्यो न स्नेह गंभीर। को घटी या बृषभानुजा, वे हलधर के बीर।।
 
इस उदाहरण में “वृषभानुजा” शब्द का श्लेष अलंकार बहुत सुंदर तरीके से प्रस्तुत किया गया है। “वृषभानुजा” का संदर्भ राधा के रूप में है, जो बृषभानु (राजा) की पुत्री हैं। “वृषभ” का अर्थ बैल से भी है, और “बृषभानुजा” का एक अर्थ गाय का बछड़ा भी हो सकता है। 
 
 
9. जो चाहो चटक न घटै, मैलो होय न मित्त। रज राजस न छुवाइये, नेह चीकने चित्त।
 
यहां “रज” शब्द का प्रयोग एक साथ दो अर्थ प्रस्तुत करता है। एक ओर, यह प्रेम की स्थिति में रजोगुण (मानव गुण) के प्रभाव को बताता है। दूसरी ओर, यह प्रेम को धूल और गंदगी से मुक्त रखने का संकेत देता है।
 
 
10. भिखारिन को देख पट देत बार-बार।
 
इस उदाहरण में “पट” शब्द का प्रयोग एक ही समय में दो अलग-अलग अर्थ प्रस्तुत करता है। एक ओर, कोई व्यक्ति कपड़ा देकर दयालुता दिखा रहा है और भिखारिन की मदद कर रहा है। दूसरी ओर, यह दरवाज़े के संदर्भ में किसी प्रकार की स्वीकृति या प्रवेश का संकेत देता है।
 
 

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निष्कर्ष


इन ब्लॉग के माध्यम से, श्लेष अलंकार और श्लेष अलंकार के 10 उदाहरण (Shlesh Alankar) का अध्ययन किया और उन्हें समझने का प्रयास किया। श्लेष अलंकार में एक ही शब्द के कई अर्थ होते हैं, और इसका उपयोग कविता, साहित्य और भाषा को अधिक गहराई, बहुआयामीता और सौंदर्य प्रदान करने के लिए किया जाता है। श्लेष अलंकार कविता या साहित्य को गहराई और समृद्धि देता है, जिससे पाठक या श्रोता को वाक्य या पंक्ति को अलग-अलग दृष्टिकोण से समझने का अवसर मिलता है।
 
 

FAQs


1. श्लेष अलंकार क्या है?
 

श्लेष अलंकार एक प्रकार का शब्दालंकार है जिसमें एक ही शब्द का प्रयोग एक ही स्थान पर विभिन्न अर्थों में किया जाता है। इस अलंकार में एक शब्द के कई अर्थ निकलते हैं।

2. श्लेष अलंकार को पहचानने का तरीका क्या है?
 

जब किसी वाक्य में एक ही शब्द दो या अधिक अर्थों में प्रयुक्त होता है, और वह वाक्य को भिन्न-भिन्न संदर्भों में अर्थ प्रदान करता है, तो वहाँ श्लेष अलंकार होता है।

3. श्लेष अलंकार और यमक अलंकार  में क्या अंतर है?
 

श्लेष अलंकार में एक ही शब्द का प्रयोग एक ही बार होते हुए भी अलग-अलग अर्थों में किया जाता है। श्लेष अलंकार का उद्देश्य एक शब्द से भिन्न-भिन्न अर्थ प्रकट करना होता है।

यमक अलंकार में एक ही शब्द का प्रयोग एक वाक्य या पंक्ति में दो बार होता है, लेकिन दोनों बार शब्द का अर्थ अलग अलग होता है। यहाँ एक ही शब्द का प्रयोग कई बार आता है।

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