समास – समास किसे कहते हैं, समास की परिभाषा, प्रकार और उदाहरण
Samas In Hindi
समास किसे कहते हैं
समास का शाब्दिक अर्थ है ‘संक्षिप्तिकरण’। दो या दो से अधिक शब्दों के संयोग को हम समास कहते हैं। इस मेल में विभक्ति चिह्नों का लोप हो जाता है। समास प्रक्रिया में शब्दों का संक्षेपण किया जाता है।
समास एक ऐसा वाक्यभेद है जिसमें दो या दो से अधिक पद मिलकर एक नया शब्द बनाते हैं, जिसमें उन पदों के बीच एक विशेष संबंध होता है। यह विशेषता या संबंध इस लेख समास – समास किसे कहते हैं, समास की परिभाषा, प्रकार और उदाहरण समास द्वारा आईए समझते है।
समास हिंदी व्याकरण का महत्वपूर्ण हिस्सा है जो किसी वाक्य में पदों के मेल से बनता है। भाषा में संक्षेपण बहुत ही आवश्यक होता है और समास इसमें सहायक होते हैं। समास द्वारा संक्षेप में कम से कम शब्दों का उपयोग करके बड़ी से बड़ी और पूर्ण बात को स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है। समास के माध्यम से भाषा में संक्षेप होता है और वाक्यरचना में सुधार होता है।
समास की परिभाषा
दो अथवा दो से अधिक शब्दों से मिल कर बने हुए नए सार्थक शब्द को समास कहते हैं।
समास में दो पद होते हैं – (1) पूर्वपद (2) उत्तरपद
सामासिक शब्द/समस्त पद :
समास के नियमों से निर्मित शब्द सामासिक शब्द कहलाता है। इसे समस्त पद भी कहते हैं। समास प्रक्रिया में पदों के बीच की विभक्तियाँ लुप्त हो जाती हैं।
समास के उदाहरण:
- “राजा की माता” = “राजमाता”
‘राजमाता’ में पूर्वपद ‘राज’ है और उत्तरपद ‘माता’ है। यहाँ ‘की’ विभक्ति लुप्त हो गई है। इस प्रकार दो या दो से अधिक शब्दों (जैसे ‘राजा’ और ‘माता’) के मेल से विभक्ति चिह्नों (जैसे ‘की’) के लोप के कारण जो नवीन शब्द बनते हैं (जैसे “राजमाता”) उन्हें सामासिक या समस्त पद कहते हैं।
- “भावपूर्ण” = “भाव से पूर्ण”
- “गंगाजल” = “गंगा का जल”
इसके अलावा, कई शब्दों में कुछ विकार भी आ जाता है। उदाहरण – “घुड़सवार” = “घोड़े पर सवार” (घोड़े के ‘घो’ का ‘घु’ बन जाना)।
समास विग्रह :
सामासिक शब्दों के बीच के संबंधको स्पष्ट करना समास-विग्रह कहलाता है। सामासिक शब्दों का संबंध व्यक्त करने वाले विभक्ति लिखने वाली प्रक्रिया को ‘विग्रह’ कहते हैं।
समास विग्रह के उदाहरण:
- “गंगाजल” समस्त पद का विग्रह “गंगा का जल”
- “ऋणमुक्त” समस्त पद का विग्रह “ऋण से मुक्त”
- “प्रेमसागर” समस्त पद का विग्रह “प्रेम का सागर”
- “दिनचर्या” समस्त पद का विग्रह “दिन की चर्या”
समास के प्रकार (समास के भेद)
समास के छह मुख्य भेद हैं
1. अव्ययीभाव समास
2. तत्पुरुष समास
3. कर्मधारय समास
4. द्विगु समास
5. द्वंद्व समास
6. बहुव्रीहि समास
समास के प्रकार पदों की प्रधानता पर आधारित होते हैं
| समास | पद की प्रधानता |
|---|---|
| अव्ययीभाव | पूर्वपद प्रधान |
| तत्पुरुष, कर्मधारय और द्विगु | उत्तरपद प्रधान |
| द्वंद्व | दोनों पद प्रधान |
| बहुव्रीहि | दोनों पद अप्रधान |
1. अव्ययीभाव समास
अव्ययीभाव समास की परिभाषा
जिस समास में पूर्वपद अव्यय तथा प्रधान हो, उसे अव्ययीभाव समास कहते हैं। इसमे पूर्वपद अनु, आ, प्रति, यथा आदि होता है।
अव्ययीभाव समास के उदाहरण
| समस्त-पद | पूर्वपद | उत्तरपद | समास-विग्रह |
|---|---|---|---|
| अनुरुप | अनु | रुप | रुप के योग्य |
| आजन्म | आ | जन्म | जन्म से लेकर |
| आजीवन | आ | जीवन | जीवन भर |
| आमरण | आ | मरण | मरण तक |
| प्रतिकूल | प्रति | कूल | इच्छा के विरुद्ध |
| प्रतिक्षण | प्रति | क्षण | हर क्षण |
| प्रतिदिन | प्रति | दिन | प्रत्येक दिन |
| बेखबर | बे | खबर | बिना खबर के |
| भरपेट | भर | पेट | पेट भर के |
| यथाक्रम | यथा | क्रम | क्रम के अनुसार |
| यथाशक्ति | यथा | शक्ति | शक्ति के अनुसार |
| यथासंभव | यथा | संभव | जैसा संभव हो |
| हाथों-हाथ | हाथ | हाथ | हाथ ही हाथ में |
| रातों-रात | रात | रात | रात ही रात में |
2. तत्पुरुष समास
तत्पुरुष समास की परिभाषा
जिस समास में पूर्वपद गौण तथा उत्तरपद प्रधान होता है वहाँ तत्पुरुष समास होता है। इसमे दोनों पदों के बीच का कारक लुप्त हो जाता है ।
तत्पुरुष समास के उदाहरण
- “धर्मग्रंथ” = “धर्म का ग्रंथ”
- “रचनाकार” = “रचना को करने वाला”
- “हस्तलिखित” = “हस्त से लिखित”
तत्पुरुष समास के भेद
2.1) कर्म तत्पुरुष समास
कर्म तत्पुरुष समास में ‘को’ विभक्ति का लोप हो जाता है।
| समस्त-पद | समास-विग्रह |
|---|---|
| सर्वप्रिय | सर्व को प्रिय |
| रथचालक | रथ को चलाने वाला |
| यशप्राप्त | यश को प्राप्त |
| पदप्राप्त | पद को प्राप्त |
| गगनचुंबी | गगन को चूमने वाला |
| सर्वज्ञ | सब को जाननेवाला |
| मतदाता | मत को देने वाला |
| जेबकतरा | जेब को कतरने वाला |
| बसचालक | बस को चलाने वाला |
| स्वर्गप्राप्त | स्वर्ग को प्राप्त |
2.2) करण तत्पुरुष समास
करण तत्पुरुष समास में ‘से’, ‘के द्वारा’ विभक्ति का लोप हो जाता है।
| समस्त-पद | समास-विग्रह |
|---|---|
| करुणापूर्ण | करुणा से पूर्ण |
| बाढ़पीड़ित | बाढ़ से पीड़ित |
| भयाकुल | भय से आकुल |
| भावपूर्ण | भाव से पूर्ण |
| मदांध | मद से अंधा |
| मनचाहा | मन से चाहा |
| रेखांकित | रेखा से अंकित |
| शोकग्रस्त | शोक से ग्रस्त |
| सूररचित | सूर के द्वारा रचित |
| हस्तलिखित | हस्त से लिखित |
| गुणयुक्त | गुणों से युक्त |
| शोकाकुल | शोक से आकुल |
| मनमाना | मन से माना हुआ |
| बाणाहत | बाण से आहत |
2.3) संप्रदान तत्पुरुष समास
संप्रदान तत्पुरुष समास में ‘के लिए’ विभक्ति का लोप हो जाता है।
| समस्त-पद | समास-विग्रह |
|---|---|
| गुरुदक्षिणा | गुरु के लिए दक्षिणा |
| गौशाला | गौ के लिए शाला |
| डाकगाड़ी | डाक के लिए गाड़ी |
| देशभक्ति | देश के लिए भक्ति |
| परीक्षाभवन | परीक्षा के लिए भवन |
| प्रयोगशाला | प्रयोग के लिए शाला |
| यज्ञशाला | यज्ञ के लिए शाला |
| युद्धभूमि | युद्ध के लिए भूमि |
| विद्यालय | विद्या के लिए आलय |
| स्नानघर | स्नान के लिए घर |
| हथकड़ी | हाथ के लिए कड़ी |
2.4) अपादान तत्पुरुष समास
अपादान तत्पुरुष समास में ‘से’ (अलग होने का भाव) विभक्ति का लोप हो जाता है।
| समस्त-पद | समास-विग्रह |
|---|---|
| ऋणमुक्त | ऋण से मुक्त |
| गुणहीन | गुण से हीन |
| जलहीन | जल से हीन |
| धनहीन | धन से हीन |
| पथभ्रष्ट | पथ से भ्रष्ट |
| पापमुक्त | पाप से मुक्त |
| बंधनमुक्त | बंधन से मुक्त |
| पदमुक्त | पद से मुक्त |
2.5) संबंध तत्पुरुष समास
संबंध तत्पुरुष समास में ‘का’, ‘के’, ‘की’ विभक्ति का लोप हो जाता है।
| समस्त-पद | समास-विग्रह |
|---|---|
| गंगाजल | गंगा का जल |
| गृहस्वामी | गृह का स्वामी |
| जलधारा | जल की धारा |
| पराधीन | पर के अधीन |
| मतदाता | मत का दाता |
| विदयासागर | विद्या का सागर |
| राजपुत्र | राजा का पुत्र |
| राजमाता | राजा की माता |
| देशरक्षा | देश की रक्षा |
2.6) अधिकरण तत्पुरुष समास
अधिकरण तत्पुरुष समास में ‘में’, ‘पर’ विभक्ति का लोप हो जाता है।
| समस्त-पद | समास-विग्रह |
|---|---|
| आनंदमग्न | आनंद में मग्न |
| आपबीती | आप पर बीती |
| कलाश्रेष्ठ | कला में श्रेष्ठ |
| गृहप्रवेश | गृह में प्रवेश |
| घुड़सवार | घोड़े पर सवार |
| जलमग्न | जल में मग्न |
| धर्मवीर | धर्म में वीर |
| पुरुषोत्तम | पुरुषों में उत्तम |
| लोकप्रिय | लोक में प्रिय |
3. कर्मधारय समास
कर्मधारय समास की परिभाषा
जिस सामासिक शब्द का उत्तर पद प्रधान हो और पूर्वपद व उत्तरपद में विशेषण-विशेष्य अथवा उपमान उपमेय का संबंध हो, वह कर्मधारय समास कहलाता है।
कर्मधारय समास के उदाहरण
विशेषण-विशेष्य संबंध
| समस्त-पद | समास-विग्रह |
|---|---|
| महाराजा | महान है जो राजा |
| महात्मा | महान है जो आत्मा |
| नीलकंठ | नीला है जो कंठ |
| नीलगाय | नीली है जो गाय |
| परमानन्द | परम है जो आनन्द |
| सद्धर्म | सत है जो धर्म |
| अंधविश्वास | अंध है जो विश्वास |
| शुभागमन | शुभ है जो आगमन |
| सज्जन | सत है जो जन |
उपमान उपमेय संबंध
| समस्त-पद | समास-विग्रह |
|---|---|
| कमलनयन | कमल के समान नयन |
| विद्याधन | विद्या रूपी धन |
| चरणकमल | कमल के समान चरण |
| प्राणप्रिय | प्राणों के समान प्रिय |
| मृगनयन | मृग के समान नयन |
| चंद्रमुख | चंद्र के समान मुख |
4. द्विगु समास
द्विगु समास की परिभाषा
जिस सामासिक शब्द का उत्तर पद प्रधान हो और पूर्वपद संख्यावाचक अर्थात गणना-बोधक हो, वह द्विगु समास कहलाता है।
द्विगु समास के उदाहरण
| समस्त-पद | समास-विग्रह |
|---|---|
| नवरत्न | नव रत्नों का समूह |
| त्रिमूर्ति | तीन मूर्तियों का समूह |
| सप्तदीप | सात दीपों का समूह |
| त्रिभुवन | तीन भुवनों का समूह |
| सप्ताह | सात दिनों का समूह |
| सप्तर्षि | सात ऋषियों का समूह |
| पंचवटी | पाँच वटी का समूह |
| सप्तसिधु | सात सिंधुओं का समूह |
| तिरंगा | तीन रंगों का समूह |
5. द्वंद्व समास
द्वंद्व समास की परिभाषा
जिस समास में पूर्वपद और उत्तरपद दोनों ही प्रधान हों और तथा समास-विग्रह करने पर ‘और’, ‘या’ ‘अथवा’ तथा ‘एवं’ आदि लगते हैं, वह द्वंद्व समास कहलाता है।
द्वंद्व समास के उदाहरण
| समस्त-पद | समास-विग्रह |
|---|---|
| पाप-पुण्य | पाप और पुण्य |
| सुख-दुःख | सुख और दुःख |
| माता-पिता | माता और पिता |
| आयात-निर्यात | आयात और निर्यात |
| दाल-रोटी | दाल और रोटी |
| रात-दिन | रात और दिन |
| आज-कल | आज और कल |
| भाई-बहन | भाई और बहन |
| गंगा-यमुना | गंगा और यमुना |
| गुण-दोष | गुण और दोष |
| देश-विदेश | देश और विदेश |
| राजा-प्रजा | राजा और प्रजा |
| हानि-लाभ | हानि और लाभ |
6. बहुव्रीहि समास
बहुव्रीहि समास की परिभाषा
जिस समास में पूर्वपद और उत्तरपद दोनों ही प्रधान नहीं होते हों तथा दोनों पदों के माध्यम से एक विशेष अर्थ का बोध होता है, वह बहुव्रीहि समास कहलाता है।
बहुव्रीहि समास के उदाहरण
| समस्त-पद | समास-विग्रह |
|---|---|
| प्रधानमंत्री | मंत्रियों में प्रधान है जो अर्थात् प्रधानमंत्री |
| पंकज | पंक में पैदा हो जो अर्थात् कमल |
| विषधर | विष को धारण करने वाला अर्थात् सर्प |
| मृत्युंजय | मृत्यु को जीतने वाला अर्थात् शंकर |
| निशाचर | निशा में विचरण करने वाला अर्थात् राक्षस |
| दशानन | दस हैं आनन जिसके अर्थात् रावण |
| चक्रपाणि | चक्र है पाणि में जिसके अर्थात् विष्णु |
| महावीर | महान है जो वीर अर्थात् हनुमान |
| लम्बोदर | लम्बा उदर है जिनका अर्थात् गणेशजी |
| हंसवाहिनी | हंस है वाहन जिसका अर्थात् सरस्वती |
| गिरिधर | गिरि को धारण करने वाले अर्थात् श्रीकृष्ण |
Read More 👇
रस – परिभाषा, भेद और उदाहरण – Ras Ki Paribhasha
Sangya Kise Kahate Hain | संज्ञा किसे कहते हैं
Conclusion
इस लेख समास – समास किसे कहते हैं, समास की परिभाषा, प्रकार और उदाहरण समास में, हमने देखा कि समास हिंदी व्याकरण का महत्वपूर्ण हिस्सा है जो भाषा को संरचित और सुगम बनाता है। शब्दों के मेल से नए शब्दों का निर्माण करने का यह तकनीकी पहलुओं से भरा हुआ है, जो वाक्यरचना को सरल और सुव्यवस्थित बनाता है।
समास का अध्ययन हमें भाषा के गहरे अर्थों और संबंधों को समझने में मदद करता है, जिससे हम विभिन्न प्रकार के वाक्यों को सुनियोजित रूप से रच सकते हैं। यह नियमों और प्रक्रियाओं का अध्ययन करने के माध्यम से हमें अधिक निर्देशित और सुव्यवस्थित भाषा का प्रयोग करने में सहायक होता है।
समास का ज्ञान हमें भाषा का सुधार करने में मदद करता है और विभिन्न प्रकार के संबंधों को सुगमता से समझाने में सहायक होता है। इससे हम व्याकरण के नियमों का अध्ययन कर सकते हैं और सही रूप से भाषा का प्रयोग कर सकते हैं।
FAQ’s
- समास के कितने भेद होते हैं (समास कितने प्रकार के होते हैं)?
समास के छह मुख्य भेद हैं
1. अव्ययीभाव समास
2. तत्पुरुष समास
3. कर्मधारय समास
4. द्विगु समास
5. द्वंद्व समास
6. बहुव्रीहि समास - समास किसे कहते हैं?
दो अथवा दो से अधिक शब्दों से मिल कर बने हुए नए सार्थक शब्द को समास कहते हैं।
- कर्मधारय और बहुब्रीहि समास में अंतर क्या हैं?
कर्मधारय समास में दोनों पदों में विशेषण-विशेष्य तथा उपमान-उपमेय का संबंध होता है। बहुब्रीहि समास में दोनों पद ही प्रधान नहीं होते हैं तथा दोनों पदों के माध्यम से एक विशेष अर्थ का बोध होता है।