Apathit Gadyansh For Class 5 – १
संस्कृति का सामान्य अर्थ है, मानव जीवन के दैनिक आचार-व्यवहार, रहन-सहन तथा क्रिया-कलाप आदि। वास्तव में संस्कृति का निर्माण एक लंबी परम्परा के बाद होता है। संस्कृति विचार व आचरण के वे नियम और मूल्य हैं जिन्हें कोई अपने अतीत से प्राप्त करता है। इसलिए कहा जाता है कि इसे हम अतीत से अपनी विरासत के रूप में प्राप्त करते हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो संस्कृति एक विशिष्ट जीवन-शैली का नाम है। यह एक सामाजिक विरासत है जो परंपरा से चली आ रही होती है। प्रायः सभ्यता और संस्कृति को एक ही मान लिया जाता है, परंतु इनमें भेद हैं। सभ्यता में मनुष्य के जीवन का भौतिक पक्ष प्रधान है अर्थात् सभ्यता का अनुमान भौतिक सुख-सुविधाओं से लगाया जा सकता है। इसके लिए विपरीत संस्कृति को आत्मा माना जा सकता है । इसलिए इन दोनों को अलग-अलग करके नहीं देखा जा सकता। वास्तव में दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। इनका विकास भी साथ-साथ होता है। अंतर केवल इतना है कि सभ्यता समय के बाद बदलती रहती है, किंतु संस्कृति शाश्वत रहती है।
प्रश्न 1. संस्कृति का क्या अर्थ है?
उत्तर : संस्कृति का सामान्य अर्थ मानव जीवन के दैनिक आचार-व्यवहार, रहन-सहन तथा क्रिया-कलाप आदि है।
प्रश्न 2. संस्कृति को विरासत का स्वरूप क्यों कहा जाता है?
उत्तर : संस्कृति विचार व आचरण के नियम और मूल्य हम अपने अतीत से प्राप्त करते है इसलिए संस्कृति को विरासत का स्वरूप कहा जाता है।
प्रश्न 3. सभ्यता और संस्कृति में क्या भेद है?
उत्तर : संस्कृति सामाजिक विरासत है जो परंपरा से चली आ रही होती है और शाश्वत रहती है लेकिन सभ्यता मनुष्य के जीवन का भौतिक पक्ष प्रधान है और समय के बाद बदलती रहती है।
प्रश्न 4. गद्यांश का योग्य शीर्षक लिखिए
उत्तर : “संस्कृति और सभ्यता”
Apathit Gadyansh For Class 5 – २
भारतीय भाषाओं और साहित्य में अग्रस्थान ग्रहण करने का हिंदी ने आग्रह नहीं किया। यह इन सबकी संयोजक शक्ति के रूप में बनी रहना चाहती है। हिंदी का यह विनय हिंदी के हीन भाव के कारण नहीं है। अब वह समय आ गया है जब हम हिंदी की संतानों को क्षमा-प्रार्थना के स्वर में नहीं, सत्य स्थापना के स्वर में यह दृढ़तापूर्वक कहना चाहिए कि राज-भाषा होने के लिए हिंदी अब अपने को अपमानजनक शर्तों पर बेचने को तैयार नहीं है। राजभाषा का पद हिंदी के लिए बहुत छोटा पद है। हिंदी का साहित्यकार राजस्तुति को, प्राकृतजन के गुणगान को हमेशा तुच्छ और हेय कविकर्म मानता आया है। वह हमेशा से तेज का उपासक रहा है-वह तेज चाहे छोटे-छोटे से आदमी में हो पर हो। वह ऐसा कि उसमें समग्र विश्व का तेज प्रतिबिंबित हो। हम शासन के दबाव के कारण नहीं, अपने दायित्व के बोध के कारण समग्र भारत के जीवन के संस्पर्श से हिंदी को पुलकित कर रहे हैं और कीजिएगे। प्रकाश की किरण विदेश के किसी भी कौने से आए उसे ग्रहण कीजिएगे, पर उसके साथ ही हम प्रत्येक ऐसी बाधा का या दीवार का भंजन भी कीजिएगे जो हमें घेरती हों, जो हमारे प्राणों को बन्धन में डालती हैं तथा जो हमारे प्रकाश रूँधती हों।
प्रश्न 1. हिंदी किस रूप में बनी रहना चाहती है?
उत्तर : हिंदी भारतीय भाषाओं और साहित्य में संयोजक शक्ति के रूप में बनी रहना चाहती है।
प्रश्न 2. हिंदी का साहित्यकार किसे तुच्छ कविकर्म मानता आया है?
उत्तर : हिंदी का साहित्यकार राजस्तुति को, प्राकृतजन के गुणगान को हमेशा तुच्छ और हेय कविकर्म मानता आया है।
प्रश्न 3. हिंदी के रचनाकार किस प्रकार के तेज का उपासक रहा है?
उत्तर : हिंदी के रचनाकार उस तेज के उपासक है जो छोटे-छोटे से आदमी मे हो और उस तेज मे समग्र विश्व का तेज प्रतिबिंबित होता हो।
प्रश्न 4. गद्यांश को उचित शीर्षक दीजिए
उत्तर : “हिन्दी मातृभाषा”
Apathit Gadyansh For Class 5 – ३
ईश्वरचंद्र विद्यासागर बंगाल के प्रसिद्ध विद्वान थे। एक दिन रेलगाड़ी से कहीं से आ रहे थे। जब वे स्टेशन पर उतरे तो उन्होंने देखा कि एक नवयुवक स्टेशन पर खड़ा था और कुली- कुली पुकार रहा था। स्टेशन छोटा था इसलिए वहां कोई कुली नहीं था। ईश्वरचंद्र को यह देखकर आश्चर्य हुआ की युवक के पास भारी सामान नहीं था बल्कि एक छोटा सा सूटकेस था। युवक के पास पहुंचे और बोले लाइए आपका सामान उठा देता हूं। युवक यहां ईश्वरचंद्र विद्यासागर से ही मिलने आया था। ईश्वरचंद्र ने धोती कुर्ता पहन रखा था इसलिए युवक उन्हें पहचान न पाया स्टेशन से बाहर निकलने पर युवक ने उन्हें कुछ पैसे दिए मगर ईश्वरचंद्र ने नहीं लिए। युवक को लगा शायद पैसे कम है इसलिए यह व्यक्ति उन्हें लेने से इंकार कर रहा है। उसने अधिक पैसे देने चाहे पर ईश्वरचंद्र बोले मैंने आपका सूटकेस पैसों के लिए नहीं उठाया। मैंने तो बस आपकी सहायता की है। अगले दिन युवक ईश्वरचंद से मिलने पहुंचा तो उन्हें देखकर हैरान रह गया उसे अपने पर बहुत शर्म आ रही थी उसने ईश्वरचंद जी के चरणों में गिरकर क्षमा याचना की ईश्वरचंद ने कहा बेटे प्रतिज्ञा करो कि भविष्य में अपना कार्य स्वयं करोगे।
प्रश्न 1. ईश्वरचंद्र कौन थे?
उत्तर : ईश्वरचंद्र विद्यासागर बंगाल के प्रसिद्ध विद्वान थे।
प्रश्न 2. ‘प्रसिद्ध’ शब्द में उपसर्ग कौनसा है?
उत्तर : ‘प्रसिद्ध’ शब्द में ‘प्र’ उपसर्ग है।
प्रश्न 3. ईश्वरचंद्र ने युवक से क्या प्रतिज्ञा करवाई?
उत्तर : ईश्वरचंद्र ने युवक से प्रतिज्ञा करवाई की वह भविष्य में अपना कार्य स्वयं करे।
प्रश्न 4. ‘विद्वान’ शब्द का स्त्रीलिंग रूप क्या है?
उत्तर : विद्वान शब्द का स्त्रीलिंग रूप ‘विदुषी’ है।
Apathit Gadyansh For Class 5 – ४
ज्ञान वृद्धि और आनंद की प्राप्ति का एक प्रमुख साधन अध्ययन है। वह आत्म-संस्कार के विधान का एक अंग है। किसी जाति के साहित्य में गति प्राप्त करने का कोई और द्वार नहीं है। किसी जाति के भाव और विचार साहित्य में ही व्यक्त रहते हैं तथा उसी में उसकी उन्नति के क्रम का लेख रहता है। मनुष्य जाति के सुख और कल्याण के विषय में संसार में प्रतिभा सम्पन्न लोगों ने जो सिद्धांत स्थिर किए हैं उन्हें जानने का साधन स्वाध्याय ही है। जो पढ़ता है नहीं, उसे इस बात की खबर ही नहीं रहती कि मनुष्य की ज्ञान परंपरा किस सीमा तक पहुँच चुकी है। वह और यह जानता ही नहीं कि मनुष्यों के श्रम से एक मार्ग तैयार हो चुका है।
प्रश्न 1. अध्ययन का क्या उद्देश्य है?
उत्तर : अध्ययन का उद्देश्य ज्ञान वृद्धि और आनंद की प्राप्ति है।
प्रश्न 2. स्वाध्याय का महत्व क्यों है?
उत्तर : स्वाध्याय मनुष्य जाति के सुख और कल्याण के विषय में संसार में प्रतिभा सम्पन्न लोगों ने जो सिद्धांत स्थिर किए हैं उन्हें जानने का साधन है।
प्रश्न 3. मनुष्य को अध्ययन क्यों करना चाहिए?
उत्तर : मनुष्य के अध्ययन न करने से, उसे को इस बात की खबर नहीं रहती कि मनुष्य ज्ञान परंपरा किस सीमा तक पहुँच चुकी है और वह अंधकार में रहता है।
प्रश्न 4. गद्यांश को उचित शीर्षक दीजिए
उत्तर : “अध्ययन का महत्व”
Apathit Gadyansh For Class 5 – ५
जीवन के लिए मनोरंजन की अत्यंत आवश्यकता है। मनोरंजन के कार्य तथा साधन कुछ क्षण के लिए मानव जीवन के गहन बोझ को कम करके व्यक्ति में उत्साह का संचालन कर देते हैं। मानव सृष्टि के आरंभ से ही मनोरंजन की आवश्यकता प्राणियों ने अनुभव की होगी और जैसे-जैसे समय व्यतीत होता गया वैसे-वैसे नवीनतम खोज इस अभाव को पूरा करने के लिए की गई।
वर्तमान काल में चारों ओर विज्ञान की तूती बोल रही है। मनोरंजन के क्षेत्र में जितने भी सुंदर अन्वेषण एवं आविष्कार हुए हैं. उनमें सिनेमा (चलचित्र) भी एक है। चलचित्र का आविष्कार 1890 ई० में थॉमस अल्वा एडीसन द्वारा अमेरिका में किया गया। जनसाधारण के सम्मुख सिनेमा पहली बार लंदन में लुमेर द्वारा उपस्थित किया गया। भारत में पहले सिनेमा के संस्थापक दादा साहब फाल्के समझे जाते हैं।
उन्होंने पहला चलचित्र 1913 में बनाया। भारतीय जनता ने इसकी भूरि-भूरि प्रशंसा की। आज इस व्यवसाय पर करोड़ों रुपया लगाया जा रहा है और विश्व में भारत का स्थान इस क्षेत्र में प्रथम है। पहले-पहल चलचित्र जगत में केवल मूक चित्रों का ही निर्माण होता था। बाद में इसमें ध्वनिकरण होता गया। चलचित्र निर्माण में कैमरे का एक महत्वपूर्ण स्थान है। यह कैमरा एक विशेष प्रकार का बना होता है।
प्रश्न 1. मानव जीवन के लिए मनोरंजन क्यों आवश्यक है?
उत्तर : मनोरंजन के कार्य तथा साधन कुछ क्षण के लिए मानव जीवन के गहन बोझ को कम कर देते हैं। व्यक्ति में उत्साह का संचार कर देते हैं।
प्रश्न 2. चलचित्र का आविष्कार कब और किसने किया?
उत्तर : चलचित्र का आविष्कार 1890 ई० में थॉमस अल्वा एडीसन द्वारा किया गया।
प्रश्न 3. भारत में सिनेमा के पहले संस्थापक कौन थे तथा कैसे?
उत्तर : भारत में सिनेमा के पहले संस्थापक दादा साहब फाल्के थे। उन्होंने पहला चलचित्र 1913 में बनाया।
प्रश्न 4. गद्यांश को उचित शीर्षक दीजिए
उत्तर : “चलचित्र और मनोरंजन”